करौली.

करौली के श्रीमहावीरजी में बुधवार को भगवान जिनेंद्र की ऐतिहासिक रथ यात्रा दोपहर को तीन बजे निकाली गई, जिसमें सभी धर्म और समाजों के हजारों लोग शामिल हुए। इसके बाद गंभीर नदी के जल से अभिषेक किया गयाष। इसके अलावा ऊंट दौड़ व घुड दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।

आपको बता दें कि गुरुवार को खेलकूद एवं कुश्ती दंगल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। मूर्ति के चमत्कार और अतिशय की महिमा तेजी से सम्पूर्ण क्षेत्र में फैल गई। सभी धर्म, जाति और सम्प्रदाय के लोग भारी संख्या में दूर-दूर से दर्शनार्थ आने लगे। उनकी मनोकामना पूर्ण होने लगी। क्षेत्र मंगलमय हो उठा। समय के प्रवाह में विकसित होता यह तीर्थ आज सम्पूर्ण भारत का गौरव स्थल बन गया है। अतिशयकारी भगवान महावीर की प्रतिमा से प्रभावित होकर बसवा निवासी अमरचन्द बिलाला ने यहां एक मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के चारों ओर दर्शनार्थियों के ठहरने के लिए कमरों का निर्माण भक्तजनों के सहयोग से कराया गया, जिसे "कटला" कहा जाता है। कटले के मध्य में स्थित है मुख्य मन्दिर। इस विशाल जिनालय के गगनचुम्बी धवल शिखर एवं स्वर्ण कलशों पर फहराती जैन धर्म की ध्वजा सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक चरित्र का संदेश देती प्रतीत होती हैं।

निकाली गई रथ यात्रा
श्री महावीर जी के वार्षिक मेले में परंपरा के अनुसार, जैन समाज ने भगवान महावीर स्वामी की रथ यात्रा निकाली। जियो और जीने दो के संदेश से विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे भगवान महावीर के इस दर्शनीय स्थल पर रथ यात्रा में हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। रथ यात्रा बुधवार दोपहर को निकाली गई। रथ यात्रा के इस आयोजन में हिंडौन, श्री महावीर जी ही नहीं भारत वर्ष के विभिन्न शहरों से शामिल हुए जैन धर्मावलंबियों ने भाग लिया। रथ यात्रा दिगंबर जैन अतिशय मंदिर से बैंड बाजों के साथ रवाना हुई। जो गंभीर नदी के तट पहुंची। वहां मुकेश जैन शास्त्री ने णमोकार मंत्रों से भगवान महावीर जी की प्रतिमा का जलाभिषेक कराया। भगवान महावीर के जयकारों से क्षेत्र गुंजायमान हो गया। रथ के आगे हवा में लाठियां उछाल कर नाचते ग्रामीण युवाओं की भीड़ से जैन और सर्व समाज के लोग अनूठी परंपरा के साक्षी बने। रथ यात्रा में हिंडौन एसडीएम हेमराज गुर्जर और मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुधांशु कासलीवाल सारथी के रूप में सवार हुए। रथ यात्रा में इस बार चार जोड़ी बैल मंगवाए गए। मुख्य मंदिर से भगवान महावीर की प्रतिमा का अभिषेक करने के बाद केसरिया वस्त्र पहने, रजत मुकुट लगाए एवं इन्द्रों का रूप धारण किए श्रद्धालु प्रतिमा को मंदिर से पालकी में लेकर आए और सुसज्जित रथ में विराजमान किया। इस दौरान भगवान महावीर स्वामी की मूर्ति को जमी से निकालने वाले ग्वाले के वर्तमान वंशज का सम्मान किया गया। मुख्य रथ के आगे गज रथ, धर्म चक्र व भट्टारक जी की पालकी चल रही थी।

रथ यात्रा में मीना समाज के लोग भगवान को लोक गीतों से रिझाते हुए नाचते गाते रथ के आगे चल रहे थे। इसके बाद गुर्जर समाज के लोग भगवान जिनेंद्र के रथ को मुख्य मंदिर परिसर तक लेकर आए। मुख्य मंदिर में भगवान महावीर स्वामी की मूल नायक प्रतिमा को विराजित करने के बाद रथ यात्रा का समापन हुआ। मंदिर के पंडित सोनू पंडित ने बताया कि मेले के दौरान वैशाख माह की पड़वा को भगवान जिनेंद्र की रथयात्रा में सर्व समाज का सहयोग देखने को मिलता है। यह यात्रा अहिंसा का संदेश देती है।

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